अफसरों द्वारा खुद के ठेकेदारों से काम कराने की परंपरा नगर निगम में सालों पुरानी है। अफसर कई मलाइदार काम अपने ठेकेदारों से कराते हैं और बिल मंजूर होने पर बड़ा हिस्सा खुद रखते हैं।
इंदौर नगर निगम में 26 करोड़ का ड्रेनेज लाइन घोटाला सामने आया है। जिन पांच फर्मों के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया है। पांचों फर्मों के कर्ता-धर्ता फरार है। इन फर्मों पर पहले भी अफसर मेहरबान रहे हैं और 20 करोड़ रुपये से ज्यादा इनके खातों में नगर निगम जमा कर चुका है। पैसा जमा करने के दो घोटाले दूसरे कामों की फाइल खंगालने पर पता चले हैं। पैमेंट होते ही ठेकेदार तत्काल रुपये विड्राल कर लेते थे।
यह भी पता चला है कि ठेकेदारों के पीछे नगर निगम के अफसरों का ही दिमाग है। उन्होंने ही नगर निगम में ठेकेदार खड़े किए और उन्हें बगैर कामों के आसानी से बिल मंजूर हो जाते हैं।
घोटाला करने वाली दो फर्म नींव कंस्ट्रक्शन और किंग कंस्ट्रक्शन आपस मेें रिश्तेदार हैं। एक ठेकेदार की उम्र ही 80 साल है। पांचों फर्मों में अफसरों की सांठ-गांठ और अघोषित साझेदारी से इनकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि बिल लगाने में ठेकेदारों ने नगर निगम के असली दस्तावेजों का ही इस्तेमाल किया है।
अफसरों द्वारा खुद के ठेकेदारों से काम कराने की परंपरा नगर निगम में सालों पुरानी है। अफसर कई मलाइदार काम अपने ठेकेदारों से कराते हैं और बिल मंजूर होने पर बड़ा हिस्सा खुद रखते हैं। सात साल पहले हुए यातायात घोटाले के समय भी अफसर और ठेकेदारों का गठजोड़ सामने आ चुका है। तब भी अधूरे काम के बिल मंजूरी के लिए अकाउंट विभाग में पहुंच गए थे।
अफसरों के राज में हुए कागजों पर काम
जिस 28 करोड़ रुपये के घोटाले की जांच पुलिस कर रही है। उसे पूर्ण होना तीन साल पहले बताया गया। तब नगर निगम मेें राजनीतिक परिषद नहीं थी। अफसरों के भरोसे ही नगर निगम चल रहा था। पांच फर्मों के ठेकेदार के नाम पर उस समय भी बिल मंजूर होते रहे। आरोपी ठेकेदारों के बैंक खातों से इसका खुलासा हुआ है।