चीन ने गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उस टिप्पणी पर अपना विरोध दर्ज कराया कि वह ताइवान के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने के इच्छुक हैं। चीन ने जोर देकर कहा कि भारत को ताइवान के अधिकारियों की राजनीतिक चालों का विरोध करना चाहिए। चीन ताइवान को अपने एक विद्रोही प्रांत के रूप में देखता है जिसे मुख्य भूमि के साथ पुन: एकीकृत किया जाना चाहिए, भले ही यह बलपूर्वक किया जाए।
पिछले महीने निर्वाचित हुए ताइवान के राष्ट्रपति लाई चिंग-ते ने मोदी को बधाई देते हुए एक्स पर पोस्ट में कहा था, ‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चुनाव में जीत पर मेरी हार्दिक बधाई। हम तेजी से बढ़ती ताइवान-भारत साझेदारी को और आगे ले जाने एवं व्यापार, प्रौद्योगिकी व अन्य क्षेत्रों में अपने सहयोग का विस्तार करने को उत्सुक हैं, ताकि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और समृद्धि के लिए योगदान दिया जा सके।’
दोनों देशों के बीच घनिष्ठ संबंधों की आशा करता हूं’
जवाब में मोदी ने एक्स पर पोस्ट में कहा, ‘लाई चिंग-ते, आपके गर्मजोशी भरे संदेश के लिए धन्यवाद। मैं ताइवान के साथ पारस्परिक रूप से लाभकारी आर्थिक एवं तकनीकी साझेदारी की दिशा में काम करते हुए और अधिक घनिष्ठ संबंधों की आशा करता हूं।’
चीन ने इस पर भारत के समक्ष विरोध दर्ज कराया
चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने इन संदेशों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि चीन ने इस पर भारत के समक्ष विरोध दर्ज कराया है। एक संवाददाता सम्मेलन में जब माओ से उनकी टिप्पणी मांगी गई तो उन्होंने कहा, ‘सबसे पहले तो ताइवान क्षेत्र में कोई राष्ट्रपति नहीं है।’ साथ ही कहा, ‘चीन ताइवान के अधिकारियों और चीन के साथ राजनयिक संबंध रखने वाले देशों के बीच सभी प्रकार की आधिकारिक बातचीत का विरोध करता है। विश्व में केवल एक ही चीन है। ताइवान, चीनी गणराज्य का अविभाज्य हिस्सा है।’
भारत ने गंभीर राजनीतिक प्रतिबद्धताएं जताई
माओ ने कहा, ”एक चीन सिद्धांत अंतरराष्ट्रीय संबंधों में सर्वत्र मान्यता प्राप्त मानदंड है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय में इस पर आम सहमति है। भारत ने इस पर गंभीर राजनीतिक प्रतिबद्धताएं जताई हैं और उसे ताइवान के अधिकारियों की राजनीतिक चालों को पहचानना चाहिए, सचेत रहना चाहिए और उनका विरोध करना चाहिए।”